नई दिल्ली, 18 दिसम्बर: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को प्रतिबंधित जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक और पांच अन्य को दो आतंकवादी मामलों की सुनवाई जम्मू से नई दिल्ली स्थानांतरित करने की सीबीआई की याचिका पर जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।
एक मामला 25 जनवरी 1990 को श्रीनगर में गोलीबारी में चार भारतीय वायुसेना कर्मियों की हत्या से संबंधित है, जबकि दूसरा मामला 8 दिसंबर 1989 को तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण से संबंधित है।
बुधवार को जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस तथ्य पर गौर किया कि छह आरोपियों ने केंद्रीय जांच ब्यूरो की याचिका पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है और उन्हें दो सप्ताह में आवश्यक कार्रवाई करने को कहा। इसने मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी, 2025 को तय की।
पीठ ने कहा, “यदि मुकदमे को स्थानांतरित किया जाना है तो सभी आरोपियों को सुनना होगा।”
पीठ को बताया गया कि एक आरोपी मोहम्मद रफीक पहलू की मृत्यु हो चुकी है और उसके खिलाफ मुकदमा समाप्त हो जाएगा।
मलिक और पहलू के अलावा सीबीआई की याचिका में 10 लोगों को पक्ष बनाया गया है। इनमें से छह आरोपियों ने सीबीआई की याचिका पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
28 नवंबर को शीर्ष अदालत ने मुकदमे को स्थानांतरित करने की सीबीआई की याचिका पर यासीन मलिक और अन्य से जवाब मांगा था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अपहरण मामले में सुनवाई के लिए मलिक को जम्मू की अदालत में शारीरिक रूप से ले जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तिहाड़ जेल में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा वाली अदालत है।
शीर्ष अदालत जम्मू की एक निचली अदालत के 20 सितंबर, 2022 के आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मलिक को रूबैया सईद मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों से जिरह करने के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गया था।
सीबीआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के शीर्ष नेता मलिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और उन्हें तिहाड़ जेल परिसर से बाहर ले जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
रुबैया सईद, जिन्हें उनके अपहरण के पांच दिन बाद रिहा कर दिया गया था, जब तत्कालीन भाजपा समर्थित वी.पी. सिंह सरकार ने बदले में पांच आतंकवादियों को रिहा किया था, अब तमिलनाडु में रहती हैं। वह सीबीआई के लिए अभियोजन पक्ष की गवाह हैं, जिसने 1990 के दशक की शुरुआत में इस मामले को अपने हाथ में लिया था।
मई 2023 में एनआईए की विशेष अदालत द्वारा आतंकी फंडिंग मामले में सजा सुनाए जाने के बाद से मलिक तिहाड़ जेल में बंद हैं।