मोहम्मद बिलाल ने सतना के एक पुलिस थाने में भारतीय न्याय संहिता की धारा 294, 153ए, 295ए और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धार 3(1) और 3(2) के तहत उसके खिलाफ दर्ज की गई याचिका को खारिज करने की याचिका दायर की थी।
कोर्ट ने क्या कहा?
बिलाल ने कोर्ट में सफाई देते हुए कहा था कि किसी ने उसका इंस्टाग्राम अकाउंट हैक कर लिया था और फिर आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड कर दिया गया। हालांकि, जस्टिस जीएस अहलूवालिया की सिंगल जज बेंच ने कहा,” “एफआईआर से यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक पोस्ट क्यों अपलोड की गई है। फिर यह समझाने के बजाय कि उक्त पोस्ट किसी और ने उसके अकाउंट को हैक करके अपलोड की थी, उसने (याचिकाकर्ता) शिकायतकर्ता को गाली देना और अपमानित करना शुरू कर दिया और उसकी धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई।”
पिछले महीने के हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया था, “याचिकाकर्ता का यह आचरण दर्शाता है कि किसी और द्वारा उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड करने का बचाव गलत है। चूंकि याचिकाकर्ता ने खुद अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड करने की बात स्वीकार की है, इसलिए उसे उस तरह से प्रतिक्रिया करने का कोई अधिकार नहीं था, जैसा कि शिकायतकर्ता के साथ किया गया।”
न्यायाधीश ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं, इस पर इस समय विचार नहीं किया जा सकता। वहीं, इस मामले में हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता।