जम्मू , 24 Mar : Lok Sabha Election 2024: जम्मू-कश्मीर में पहले चरण में ऊधमपुर-डोडा-कठुआ लोकसभा सीट के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है। जीत सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों ने प्रचार शुरू कर दिया है लेकिन चुनाव में आईएनडीआईए का संयुक्त उम्मीदवार होने के बावजूद उसकी राह आसान नहीं है। बेहतर परिणाम दिखाने के लिए गठबंधन उम्मीदवार को तीस प्रतिशत मतों के अंतर को पाटना होगा।
इस सीट पर आज तक भाजपा और कांग्रेस ही जीती
उधमपुर-डोडा सीट का अगर इतिहास देखा जाए तो यहां पर कांग्रेस और भाजपा ही जीतते आए हैं। गत दो चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस को हरा कर इस सीट पर चुनाव जीता है। इस बार कांग्रेस उम्मीदवार को नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी दोनो ही दलों का समर्थन हासिल है। लेकिन पूर्व में यह देखा गया है कि इन दलों के गठबंधन के बावजूद एक दल के कार्यकर्ता दूसरे दल को अपने वोट दिलाने के लिए काम करते हैं या नहीं। तीनों दलों के कार्यकर्ताओं के समन्वय में कई बार कमी देखने को मिली है।
कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा तो सामने आया बेहतर प्रदर्शन
आंकड़ों की नजर में देखे तो कांग्रेस ने जब भी अकेले चुनाव लड़ा तो उसने अधिक बेहतर प्रदर्शन किया है। जब उसे नेशनल कांफ्रेंस या पीडीपी का समर्थन मिला तो भी उसके वोट प्रतिशत में कोई अधिक बढ़ोतरी नहीं हुई है। वर्ष 2004 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार लाल सिंह का मुकाबला तीन बार से लगातार जीतते आए भाजपा के उम्मीदवार चमन लाल गुप्ता से था।
नेकां ने नजीर सुरावर्दी को चुना था उम्मीदवार
नेशनल कांफ्रेंस ने भी खालिद नजीर सुहरावर्दी को अपना उम्मीदवार बनाया था। इन चुनावों में कांग्रेस ने 39.61 प्रतिशत वोट कर जीत दर्ज की थी। भाजपा को 31.85 प्रतिशत और नेशनल कांफ्रेंस को 11.51 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस ने वर्ष 2014 में जब नेशनल कांफ्रेंस के समर्थन से चुनाव लड़ा तो उसको 40.93 प्रतिशत वोट ही मिल पाए थे और पार्टी के उम्मीदवार गुलाम नबी आजाद भाजपा के डॉ. जितेन्द्र सिंह से हार गए थे। इन चुनावों में पीडीपी ने अपना अलग से उम्मीदवार उतारा था।
2019 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार को दोनों पार्टियों का था समर्थन
वर्ष 2019 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार को नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी दोनों का ही समर्थन हासिल था। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और उन्हें मात्र 31.10 प्रतिशत वोट ही मिल पाए। भाजपा उम्मीदवार को रिकॉर्ड 61.38 प्रतिशत वोट मिले थे जो कि बीते तीन दशकों में किसी भी उम्मीदवार को मिले सबसे अधिक मत थे।
इस बार फिर से कांग्रेस उम्मीदवार को नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी दोनो का ही समर्थन मिला है। लेकिन उनके लिए अपनी पार्टी के समर्थकों का कांग्रेस को वोट दिलाना इतना आसान नहीं होगा। आइएनडीआइए उम्मीदवार के लिए अभी राह आसान नहीं है।
उधमपुर-डोडा संसदीय सीट इस बार हुई छोटी
जानकारों का कहना है कि इस बार उधमपुर-डोडा संसदीय सीट छोटी हुई है। रियासी जिला इससे बाहर हो गया है। यह भी देखना होगा कि इस जिले में किस पार्टी को कितना वोट मिलता था और इसका नुकसान किसे हुआ है। यही नहीं सीट पर पार्टियों का गठबंधन होना आसान होता है लेकिन कार्यकर्ताओं के दिलों के बीच कितना मेल जोल बढ़ता है। यह देखना होगा। एक राजनीतिक दल का वोट दूसरे को स्थानांतरित करना आसान नहीं है।
दो दशकों में भाजपा ने बढ़ाए तीस प्रतिशत वोट
उधमपुर-डोडा संसदीय सीट पर भाजपा को पहले तीस से पैंतीस प्रतिशत वोट ही मिलते थे। वर्ष 2004 में भी पार्टी को 31.85 प्रतिशत वोट ही मिले थे। लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव आते आते भाजपा का वोट प्रतिशत 61.38 प्रतिशत हो गया। वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत वर्ष 2004 में 39.61 प्रतिशत था जो कि अंतिम चुनावों में कम होकर 31.10 प्रतिशत हो गया और दोनो दलों के बीच तीस प्रतिशत का अंतर हो गया।
अब आजाद का अपना उम्मीदवार
कांग्रेस के लिए एक और झटका पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद का पार्टी को छोड़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी का गठन करना भी है। आजाद भी इसी संसदीय क्षेत्र के रहने वाले हैं। कांग्रेस ने पिछली बार जब नेंका और पीडीपी के साथ चुनाव लड़ा था तो उस समय आजाद भी पार्टी में थे। अब कुछ वोट आजाद के साथ भी गए हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार मुकाबला कैसा रहता है।
इस सीट के लिए चुनाव होंगे दिलचस्प
उधमपुर-डोडा संसदीय सीट के रहने वाले और जाने-माने चुनाव विशलेषक एडवोकेट शेख शकील का कहना है कि इस सीट के लिए चुनाव इस बार दिलचस्प होंगे। बेशक दोनो दलों के बीच तीस प्रतिशत का अंतर है लेकिन अगर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी कार्यकर्ताओं ने दिल से काम किया तो कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
उनका कहना है कि कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार लाल सिंह पहले से दो बार यहां के सांसद रह चुके हैं। भाजपा के वर्तमान उम्मीदवार भी दो बार से सांसद हैं। देखना यह होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच बनाने के साथ-साथ अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच कौन अधिक जोश बनाए रख सकता है। अभी आप इसे एक तरफा मुकाबला नहीं कह सकते।