नई दिल्ली, 4 अप्रैल: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि पंजाब सरकार के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने पिछले वर्ष 72 परिसरों से 5.97 करोड़ रुपये मूल्य की प्रीगैबलिन युक्त दवाइयां जब्त कीं।
प्रीगैबलिन एक व्यापक रूप से दुरुपयोग की जाने वाली न्यूरोलॉजिकल दवा है। इस दवा का उपयोग मिर्गी के इलाज के लिए किया जाता है, लेकिन कुछ लोग इसका इस्तेमाल मनोरंजन के लिए भी करते हैं।
एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मंत्री ने यह भी बताया कि 12 फर्मों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं, जबकि 46 फर्मों के लाइसेंस निलंबित कर दिए गए हैं तथा 11 शिकायतें अदालतों में दायर की गई हैं।
उन्होंने कहा, “खाद्य एवं औषधि प्रशासन (ड्रग्स विंग, पंजाब) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पंजाब सरकार फार्मास्यूटिकल ड्रग प्रीगैबलिन के बढ़ते दुरुपयोग और तस्करी के बारे में जागरूक है।”
खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने 28 फरवरी को पत्र जारी कर राज्य के औषधि निर्माता, क्लियरिंग एवं फारवर्डिंग एजेंट, थोक दवा विक्रेता एवं खुदरा विक्रय दवा विक्रेता को निर्देश दिए थे कि वे प्रीगाबेलिन एवं अन्य छह प्रकार की औषधियों के क्रय-विक्रय की निर्धारित सीमा से अधिक जानकारी, रिपोर्ट एक ही चालान में संबंधित क्षेत्र के औषधि नियंत्रण अधिकारी को अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करें।
औषधियों की बिक्री और वितरण पर विनियामक नियंत्रण राज्य सरकार द्वारा नियुक्त राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों (एसएलए) द्वारा लाइसेंसिंग और निरीक्षण की प्रणाली के माध्यम से किया जाता है।
एसएलए को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 के नियामक प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में कार्रवाई करने का अधिकार है।
नड्डा ने कहा कि समय-समय पर बिना डॉक्टर के पर्चे के दवाओं की बिक्री के संबंध में छिटपुट शिकायतें प्राप्त होती हैं और इन्हें उचित कार्रवाई के लिए संबंधित राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों (एसएलए) को भेज दिया जाता है।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 7 के अंतर्गत औषधि परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) एक सलाहकार समिति है, जो अधिनियम के प्रशासन में पूरे भारत में एकरूपता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किसी भी मामले पर केन्द्र, राज्य सरकार और औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) को सलाह देती है।
नड्डा ने कहा कि डीसीसी ने 20 दिसंबर, 2024 को आयोजित अपनी 65वीं बैठक में प्रीगैबलिन के दुरुपयोग और इसकी तैयारी तथा इसे औषधि नियम, 1945 की अनुसूची एच1 में शामिल करने से संबंधित मामले पर विचार-विमर्श किया ताकि केवल पंजीकृत चिकित्सक के पर्चे पर दवाओं की बिक्री की निगरानी की जा सके।