श्रीनगर, 11 May : Srinagar Lok Sabha Election 2024: हाथ में वोटर स्लिप पकड़े 70 वर्षीय अब्दुल जब्बार डार अपने दोस्त पृथ्वी को याद कर भावुक हैं। श्रीनगर के छत्ताबल में अपने घर के बरामदे में बैठे जब्बार कहते हैं कि आज उनके मोहल्ले के प्रधान मतदाता पर्ची दे गए तो उन्हें पृथ्वीनाथ बहुत याद आया।
कश्मीर में आतंकी हिंसा के शुरुआती दौर में पृथ्वी और उनका परिवार जम्मू चला गया था। सामने खंडहर हुए कश्मीरी बुजुर्गों को आस, बदलाव का यह दौर खोलेगा हिंदुओं की वापसी की राह मकानों को देख उनका गला रुंध सा कश्मीरी हिंदुओं के खंडहर हो चुके घर जाता है।
हिंदू भाइयों को याद कर रहे कश्मीरी: जब्बार
वह कहते हैं कि एक दौर था जब हम एक साथ सबसे पहले मतदान केंद्र पहुंचते थे। जब्बार की तरह अन्य स्थानीय बुजुर्ग भी वोट के गुणा-भाग में राजनीति द्वारा भुला दिए गए अपने कश्मीरी हिंदू भाइयों को याद कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि कश्मीरी हिंदू अपने घरों को लौट आएं।
अतीत की यादों से खोए जब्बार बताते हैं कि यहीं मोहल्ले के काजी स्कूल में मतदान केंद्र हुआ करता था। 1987 के चुनाव वाले दिन पृथ्वी मुझे बुलाने आया था ।
श्रीनगर में 13 मई को होगा मतदान
उस दिन भी हम दोनों ने सबसे पहला वोट डाला था। वापसी पर पृथ्वी के घर जाकर उसकी मां के हाथ से बनी मुगल चाय (काहवा) पी थी। जब्बार ने कहा, इस बार भी उसी काजी स्कूल में पोलिंग बूथ है। 13 मई को मतदान भी है, लेकिन इस बार भी पृथ्वी मेरे साथ नहीं है। जब्बार ने कहा, मुझे खुशी है कि अब माहौल बदला है और लोगों में उत्साह है।
बस एक कमी खल रही है हमारे कश्मीरी हिंदू भाई (Exodus from Kashmir) साथ नहीं हैं। जब्बार के साथ बैठे बुजुर्ग बताते हैं कि श्रीनगर शहर के हब्बाकदल, महाराजगंज, रेनावारी, कर्णनगर, बाल गार्डन सहित अन्य क्षेत्रों में लगभग डेढ़ लाख हिंदू रहते थे। छत्ताबल में तो 50 प्रतिशत आबादी कश्मीरी हिंदुओं की थी। अब हिंदुओं के मकान वीरान पड़े हुए हैं। हम चाहते हैं कि हमारे भाई वापस अपने घरों को लौटें।
कश्मीरी हिंदू बोले- हमारी समस्याओं पर कोई नहीं कर रहा बात
कश्मीरी संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा कि मतदान से पहले भी हमें भुला दिया गया है। राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में हमारी समस्याओं का कोई जिक्र नहीं कर रहे हैं।
लोकतंत्र में हमारा विश्वास है, लेकिन हमारी घर वापसी को लेकर अभी कोई ठोस नीति नजर नहीं आ रही है। कश्मीर हिंदू वेलफेयर सोसाइटी के संस्थापक व अध्यक्ष चुनी लाल भट्ट ने कहा, हालात बदलने का दावा तब किया जा सकता है जब विस्थापन कर चुके हमारे भाई अपने घरों को लौटें।
नूर मोहम्मद को उम्मीद दोस्त का बेटा आएगा: बारामुला के बेइया गांव के 86 वर्षीय नूर मोहम्मद मागरे अपने दोस्त मास्टर त्रिलोक नाथ को याद कर रहे हैं। उन्हें भी परिवार के साथ अपनी जड़ों से दूर होना पड़ा था। वह बताते हैं कि 2020 में त्रिलोक नाथ की मौत हो गई।
पिछले वर्ष उनका बेटा व बहू माता खीर भवानी आए थे। मागरे ने कहा, गांव में उनका मकान अभी भी खाली पड़ा है। मैंने उनके बेटे से कहा है कि यहां वापस आकर अपने घर को आबाद करे। उम्मीद है कि हमारे भाई वापस आएंगे।
तेली ने कहा, अब बदल गए हैं हालात: बारामुला निवासी 65 वर्षीय गुलाम मोहम्मद तेली कहते हैं – हमने अपना आधा जीवन कश्मीरी हिंदू भाइयों के साथ गुजारा और आधा उनके बगैर। अब जिंदगी के बचे दिन उनके साथ फिर बिताना चाहते हैं। अब हालात बदले हैं, चुनाव भी हो रहे हैं। हमारी अपील है कि कश्मीरी हिंदू लौट आएं।
आतंक की भेंट चढ़ गई तमाम खुशियां
सन् 1989 के बाद आतंकवाद फूटने के साथ ही कश्मीर की खुशियों में मानो भूचाल आ गया। अधिकांश कश्मीरी हिंदुओं को अपनी जड़ों से दूर जाना पड़ा था। इनमें से ज्यादातर आज भी जम्मू, ऊधमपुर, दिल्ली व देश के अन्य हिस्सों में विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं। जो नहीं गए उनमें से भी अधिकतर बच्चों के साथ पैतृक क्षेत्रों को छोड़ श्रीनगर में आ गए और तब से यहीं पर किराये पर रह रहे हैं।
विस्थापित हिंदुओं के लिए बनाए मतदान केंद्र
विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं में करीब 1.13 लाख मतदाता हैं। प्रशासन ने लोकसभा चुनाव में इस बार मतदान के लिए जम्मू में 21, ऊधमपुर में दो और दिल्ली में चार मतदान केंद्र बनाए हैं। कश्मीर में श्रीनगर सीट पर 13 मई, बारामूला में 20 मई और अनंतनाग-राजौरी सीट पर 25 मई को मतदान है।