जम्मू, 14 Feb : आज बलिदानी नासिर की बरसी है। ये दिन बहुत तकलीफ देता है। तकलीफ कम हो जाती, यदि मेरे बच्चे भी शौहर की तरह बन पाते। लेकिन छह साल से वे तनाव में हैं। पिता की कमी को भुला नहीं पा रहे। बेटी तो किसी तरह से 9वीं कक्षा में पहुंच गई है, लेकिन छोटा बेटा अक्सर बीमार रहता है। पिता की मौत का सदमा सबसे ज्यादा बेटे को लगा है। इसकी तरफ देखकर बेटी भी मायूस हो जाती है। मैं तो यही कहूंगी कि मेरे बच्चों के इस हाल के पीछे मसूद हो या कोई और उसे जान से मार देना चाहिए।
पुलवामा हमले में बलिदान सीआरपीएफ कर्मी नासिर अहमद की पत्नी वीरांगना शाजिया कौसर कहती हैं कि मैंने बहुत कोशिश की कि पति की कमी को पूरी कर सकूं। बावजूद इसके बच्चे पिता की कमी महसूस करते हैं। वे पिता के जाने के पहले दिन से ही लेकर अब तक सदमे में हैं। बेटा तो तनाव में ही रहता है। बेटी भी किसी तरह से आगे बढ़ी है। जब भी ये दिन आता है तो बच्चे और अधिक गमगीन हो जाते हैं। कुछ लोग आते हैं हर बरसी पर सांत्वना देने के लिए। इसे देखकर बच्चे और अधिक मायूस हो जाते हैं।
पति की शहादत पर गर्व
शाजिया का कहना है कि पति के जाने का गम है। गर्व भी। मैं तो चाहती थी कि बच्चे बढ़े होकर पिता की तरह देश सेवा करें। इसके लिए प्रयास भी कर रही हूं। क्योंकि पति अकसर कहते थे कि बच्चों को ऐसी शिक्षा देना कि उनके अंदर देशभक्ति की जज्बा होना चाहिए। बता दें कि नासिर अहमद मूल रूप से राजोरी के रहने वाले थे। इस समय नासिर की पत्नी शाजिया जम्मू के बठिंडी में रहती है। नासिर हमले में बलिदान होने वाले एक मात्र जम्मू कश्मीर के रहने वाले थे।