जम्मू , 01 Oct 2024 : कभी पत्थरबाजी, हिंसा और हड़ताल के लिए बदनाम श्रीनगर के डाउनटाउन के घरों की खिड़कियां इन दिनों साबूत हैं। चमकते शीशे हैं। पहले कई सालों तक यह अतिदुर्लभ तस्वीर थी। अनुच्छेद-370 हटने के बाद इस नए नामुमकिन कश्मीर को मुमकिन वाली कैटेगरी में दर्ज किया गया है।
सड़कों, मोहल्लों, बाजारों से तो यही नजर आ रहा है, लेकिन जो इन खिड़कियों से नजर आता है, क्या वह ही घाटी का सच है? कश्मीर में जो दिखाई दे रहा है, क्या वह अवाम के भीतर का भी आईना है? इन सबका जवाब जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव के नतीजे देंगे।
वैसे तो कश्मीर में खुदा ही जानता है कि कौन जीतेगा। राजनीति के जानकार कुबूल करते हैं कि यहां के लोगों का कोई भरोसा नहीं। कब किसके साथ हो जाएं। वैसे भरोसा तो यहां के नेताओं का भी नहीं। यह देश का इकलौता सूबा है, जहां हर पार्टी, हर दूसरी पार्टी के साथ कभी न कभी सरकार बना चुकी है।
पीडीपी एनसी के साथ, पीडीपी कांग्रेस के साथ, पीडीपी भाजपा के साथ, एनसी कांग्रेस के साथ और एनसी भाजपा के साथ। राजनीति के साथ-साथ कश्मीर में मौसम भी अलग अलग किस्मों का होता है। सर्दियों में बर्फ सा सफेद और पतझड़ में चिनारों के सूखे पत्तों सा लाल सुर्ख। घाटी ने सियासत के बहुतेरे रंग देखे हैं।